بنیاد جهانی سُخن گُستران سبزمنش، Sabz manesh Foundation
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شعر گفتن- شیر بودن!

Шеъри муосири Тоҷикистон
Шоира Раҳимҷон

Тарозуи хато

Паёми хомаи мо номаҳои шиква набуд,
Паёми хомаи мо мењр буду шеъру суруд.
Зи сидќ буду муҳаббат азони ботини ман,
Паёми раҳму сафо дошт, осмонӣ дуруд!

Паёми мо зи чаманвожазори сабзи дил аст,
Зи вожа-вожаи гул аз дарахти табъи накў.
Чакомањои дилам њамчунон асал бипазир,
Каломи ишќи маро носазову њарза магў

Паёми хомаи ман номаҳои боронї,
Барои зардтарин руй аз ҳуҷуми ҳасад.
Накутарин пайи пойи қалам нисори ту бод,
Ҳаволааш ба Худо, он ки ҳаст одами бад!

Паёми хомаи ман аз ҳама тафовут дошт,
Дар озмуни садоќат ба ҳеч банда набохт.
Ту, эй ки айби маро ёфтӣ ба” бевазнӣ”,
Тарозуи ту хато буд, вазни мо нашинохт!

شعر معاصر تاجیکستان
شاعره رحیم‌جان

ترازوی خطا 
 پیام خامه‌ی ما نامه‌های شکوه‌ نبود
 پیام خامه‌ی ما مهر بود و شعر و سرود
 ز صدق بود و محبّت اذان باطن من
 پیام رحم و صفا داشت، آسمانی درود! 
 
 پیام ما ز چمن‌واژه‌زار سبز دل است
 ز واژه-واژه‌ی گل از درخت طبع نکو
 چکامه‌های دلم هم‌چنان عسل بپذیر
 کلام عشق مرا ناسزا و هرزه مگو 
 
 پیام خامه‌ی من نامه‌های بارانی
 برای زردترین روی از هجوم حسد
 نکوترین پی پایی قلم نثار تو باد
 حواله‌اش به خدا، آن که هست آدم بد! 
 
 پیام خامه‌ی من از همه تفاوت داشت
 در آزمون صداقت به هیچ بنده نباخت
 تو، ای که عیب مرا یافتی به بی‌وزنی
 ترازوی تو خطا بود، وزن ما نشناخت!

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